Monday, January 12, 2009

किस पर जायें हम

विडंबनाओं के व्यूह में फंसा मानस

जीवन की दुरभिसंधियों की गांठें

किस पार जाएं हम

निस्संगता से हासिल होगा मुकाम?

उजाले की चाहत ने दिया है अँधेरा

रौशनी क्या मिलेगी चिराग से

समय के अंतराल से उठा विक्षोभ

नैराश्य से निकलेगा आशा का गीत

या निस्सारता बनी रहेगी पाथेय

विचारों के कंदुक से आहत मन

मंथन के चक्र से निकलेगी कोई राह

आगत के गर्भ में छिपा है उत्तर

सवालों के घेरे में जकडा अस्तित्व

वैराग्य क्या है समाधान?

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