Friday, January 2, 2009
वे एक अजूबा इंडिया पेश करते हैं
समाचार माध्यमों में जो देश दिखाया जाता है वो आम लोगों का नहीं होता बल्कि महज पाँच फीसदी लोगों का होता है जिनके घर में समृद्धि का सागर हिलोरें मार रहा है.उन्हें विपन्नता के बे द्वीप दिखाई नहीं देते जहाँ दो जून की रोटी भी मुश्किल से मिल पति है। चाहे वो प्रिंट मीडिया हो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नए साल पर सबने ऐसी रंगीनियाँ पेश कीं गोया इस देश से गरीबी गायब हो गयी है। कह सकते हैं कि इस शुभ अवसर पर गरीबी कि बदरंग तस्वीर पेश करना गुनाह की मानिंद है। लेकिन क्या यह तथ्यपरक पत्रकारिता से मुंह चुराने की शुतुरमुर्गी नीति नहीं है? ३१ दिसम्बर की रात को बुद्धू बक्से पर जो रंगीनियाँ चमक रहीं थीं, उससे तो हमारे देश को एक अजूबे के रूप में पेश किया जा रहा था जहाँ हर तरफ़ हुस्न है, रवानी है का परचम लहरा रहा था। पता नहीं यह धारा हमें कहाँ ले जाकर छोडेगी?
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