विडंबनाओं के व्यूह में फंसा मानस
जीवन की दुरभिसंधियों की गांठें
किस पार जाएं हम
निस्संगता से हासिल होगा मुकाम?
उजाले की चाहत ने दिया है अँधेरा
रौशनी क्या मिलेगी चिराग से
समय के अंतराल से उठा विक्षोभ
नैराश्य से निकलेगा आशा का गीत
या निस्सारता बनी रहेगी पाथेय
विचारों के कंदुक से आहत मन
मंथन के चक्र से निकलेगी कोई राह
आगत के गर्भ में छिपा है उत्तर
सवालों के घेरे में जकडा अस्तित्व
वैराग्य क्या है समाधान?