Thursday, December 28, 2023

सोशल मीडिया पर फूट रहा मोदी समर्थकों का गुबार

इन दिनों सोशल मीडिया पर मोदी समर्थकों की नकारात्मक प्रतिक्रियाएं ज्यादा देखने को मिल रही हैं. मोदी राज के लगभग साढ़े सात सालों में कदाचित यह पहला अवसर है जब उनके कट्टर समर्थकों में भी निराशा बल्कि कुछ में तो हताशा तक नजर आ रही है. इसका कारण है सिलसिलेवार हो रही हिंसक घटनाओं पर सरकार की ओर से अपेक्षित प्रतिक्रिया का न आना और समर्थकों की अपेक्षा के अनुसार कार्रवाई न होना. 
यों तो इसकी शुरुआत नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ हुए आंदोलन से ही हो गई थी जब विरोधी दलों की शह पाकर कानून के विरोधियों ने महीनों दिल्ली की सड़कों कब्जा जमाए रखा और इसी को लेकर दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भी हो गए जिसमें 50 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. वो तो भला हो कोरोना का जिसकी वजह से सोशल डिस्टेंसिंग की पाबंदियां लागू हुईं  तो पुलिस को प्रदर्शनकारियों को हटाने का मौका मिल गया.इसके बाद हालत सुधरने ही लगे थे कि सरकार ने कृषि कानूनों में संशोधन संसद से पारित करा लिया जिससे खासकर पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों के किसाना संगठन भड़क उठे. पंजाब में शुरु हुआ आंदोलन दिल्ली की दहलीज तक पहुंचा और पिछले दस महीने से वो सड़कों पर कब्जा जमाए बैठे हैं और सरकार खुद ही कोई चमत्कार हो जाने की उम्मीद लगाए बैठी है. तुर्रा ये कि सर्वोच्च न्यायालय ने कृषि कानूनों पर स्टे लगा दिया है, फिर भी आंदोलनकारी टस से मस होने को तैयार नहीं. 26 जनवरी को लालकिले पर हुआ तांडव पूरे देश ने देखा लेकिन कार्रवाई के नाम पर हुई लीपापोती और विपक्षी दलों के समर्थन से उनका हौसला और बुलंद हो गया. इतना कि अब वे यूपी चुनाव में भाजपा को सबक सिखाने की धमकी देते घूम रहे हैं. सिंधू बार्डर पर निहंगों ने जिस तरह पंजाब के एक दलित को तालिबानी स्टाइल में मौत के घाट उतारा उससे भी समर्थकों की नाराजगी बढ़ी.इससे पहले लखीमपुर खीरी कांड एकतरफा कार्रवाई ने भी सरकार समर्थकों को उद्वेलित कर दिया. आग में घी डालने का काम किया कश्मीर में बिहारी मजदूरों की हत्याओं ने. फिलहाल मोदी समर्थक सरकार से खासे नाराज हैं, भविष्य में क्या होगा.पता नही क्योंकि मोदी ऐसी चुनौतियों से निपटने मे माहिर है.