Monday, December 29, 2008

कहाँ गई ठण्ड?

आजकल जमशेदपुर के लोगों को ठिठुरने वाली ठण्ड से निजात मिल गयी है.दिसम्बर बीत चला है लेकिन ठण्ड का वो अहसास, वो कंपकंपी कब आएगी,इसका लोग इंतजार ही कर रहे हैं.महज चार साल पहले की ही बात है, पारा गिरकर ४ डिग्री सेल्सियस तक चला आता था.लेकिन ३० दिसम्बर को भी पारा १० डिग्री सेल्सियस पर है जो इस तथ्य को रेखांकित करता है कि आर्थिक मंदी की तरह ग्लोबल वार्मिंग ने इस शहर को भी अपने शिकंजे में ले लिया है.मगर लौहनगरी जमशेदपुर ही क्यों देश के कई शहरों में मौसम में अस्वाभाविक बदलाव देखने में आ रहा है और कारण पर्यावरण को अपने तात्कालिक लाभ के लिए अपूरनीय क्षति पहुँचाना ही है.सवाल है कि हम कब चेतेंगे? जमशेदपुर के लोगों को तो वैसे भी स्टील बनाने वाली धमन भट्ठियों की परोक्ष गर्मी झेलनी पड़ रही है.अब ठण्ड में ये हल है तो जब गर्मी आएगी तो क्या होगा इसकी सिर्फ़ कल्पना ही की जा सकती है.कहने के लिए यह शहर देश में औद्योगिक क्रांति का प्रणेता रहा है लेकिन इस क्रांति के फायदे के साथ नुकसान भी तो हैं,इसकी जिम्मेवारी कौन लेगा?

Saturday, December 27, 2008

युयुत्सा

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसी स्थिति बन गयी थी लेकिन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के हस्तक्षेप ने दोनों देशों को भारी तबाही से बचा लिया लगता है.मुंबई पर आतंकी हमले के बाद से दोनों देशों के बीच जो तनाव उभर आया था, उससे युद्ध अवश्यम्भावी लग रहा था.ये हालत पैदा करने में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जबर्दस्त भूमिका अदा की है.हमले के बाद से ही ऐसा लगने लगा था कि दोनों देशों से अधिक मीडिया युयुत्सा की भावना का शिकार है.मुंबई हमलों के टीवी कवरेज से ही लग रहा था कि मीडिया तटस्थ नहीं है बल्कि वो भी उद्दाम राष्ट्रप्रेम की धारा में प्रवाहित हो रहा है.एक तरह से एक देश के लिए यह एक शुभ लक्षण कहा जा सकता है लेकिन क्या युद्ध के अलावा कोई विकल्प नहीं था?